उत्तराखंड राज्य Uttarakhand State के रुद्रप्रयाग जिले Rudraprayag District में स्थित तीन तरफ बड़े -बड़े पहाड़ों से घिरा केदारनाथ धाम (kedarnath dham )भक्तों के लिए आस्था का प्रतीक है। भगवान शिव का यह मंदिर 85 फीट ऊंचा, 187 फीट लंबा और 80 फीट चौड़ा है।

Kedarnath गौरीकुंड से 18 km दूर है । मैंने खच्चर से ही इस यात्रा को करने का फैसला किया । पैदल मार्ग आधे रास्ते तक बहुत अच्छे से विकसित है । 2013 में Kedarnath में आई बाढ़ के कारण आधे बचे मार्ग पर विकास का कार्य चल रहा है । खच्चर से लगभग 4 घंटे का समय लगा अगर आप पैदल यात्रा की सोच रहे हैं तो 7 से 8 घंटे का वक्त लगेगा ।
खच्चर से उतरने के बाद आपको Kedarnath मंदिर तक पहुंचने के लिए लगभग 1 km तक चलना होगा खच्चर वाला मुझे पूरी यात्रा में प्रेरित करता रहा और इस कठिन रास्ते को सावधानी पूर्वक पार करने में मेरी मदद की । जिस मार्ग से हम जा रहे थे वो नया मार्ग था जबकि उसी के बगल में एक मार्ग था जो 2013 में पूरी तरह से ख़तम हो चूका है ।

Kedarnath जाने के लिए helicopter service सबसे आसान और सुविधाजनक है सीतापुर और फाटा के पास कई helicopter services हैं । उड़ान भरने में 5 -7 min लगते हैं आपको अपने travel agent के माध्यम से पहले से हीं booking करवानी होगी क्यूंकि आजकल इसकी बहुत मांग है ।

Kedarnath में रात गुजरने के लिए सीमित विकल्प मौजूद है । उनमे से ज्यादातर या तो टेंट हैं या छोटे गेस्टहॉउस पैदल यात्रा करने वाले यात्री आमतौर पर केदारनाथ में रात भर रुकते हैं और अगले दिन वापस यात्रा करते हैं । यात्रियों को और अधिक सुविधा प्रदान करने के लिए कुछ upscale टेंट भी बनाये जा रहे हैं । इतनी अधिक ऊंचाई और थका देने वाली यात्रा के कारण मैंने Kedarnath मंदिर तक पहुँचने के लिए पिट्टू को चुना । चलते हुए कुछ दूरी पर आप helipad देख सकते हैं, जहाँ पर Kedarnath में helicopter land होते हैं । नीचे उतरने के बाद यह केवल 5 min की पैदल दूरी पर है । एक बात की सम्भावना है की ख़राब मौसम के कारण Helicopter की उड़ान कई बार रद्द हो सकती है । helicopter आमतैर पर private company के होते हैं और यह मई और जून के महीनों में active होकर काम करते हैं जबकि जुलाई और अगस्त के महीनों में मौसम ख़राब होने के कारण उड़ान भरना मुश्किल होता है ।
Kedarnath मंदिर में चलते हुए मैंने लोगों को मन्दाकिनी नदी में डुबकी लगते हुए देखा जिसका उद्गम स्थान Kedarnath के पीछे हिमालय है आप यहाँ 2013 में आये प्राकृतिक आपदा में बर्बाद चीज़ों को देख सकते हैं यहाँ कई घर बाढ़ में नष्ट हो गए और वहीं तीर्थयात्रियों की आस्था की भी परख हुई । हांलाकि Kedarnath मंदिर ज़मीन पर हीं खड़ा था और इसे बहुत अधिक नुकसान नहीं हुआ जिससे तीर्थयात्रियों का विश्वास और मजबूत हुआ ।
History of Kedarnath (केदारनाथ का इतिहास )
Kedarnath मंदिर के पास पहुँचते हीं सैकड़ो श्रद्धालु कतार में खड़े थे मैं भी कतार में खड़ी हो गयी ।
Kedarnath मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है, और चार धाम यात्रा में तीसरे स्थान पर है । यह माना जाता है, कि पांडवों ने मंदिर का निर्माण अपने पापों की प्रायश्चित के लिए करवाया था । इस ज्योतिर्लिंग के बारे में एक मान्यता प्रचलित है कि पांडव अपने भाइयों को हराने के बाद बहुत व्याकुल थे और अपने पापों का प्रायश्चित करना चाहते थे ।
मोक्ष की प्राप्ति हेतु उन्होंने भगवान शिव कि खोज में हिमालय की यात्रा की । भगवान शिव ने उनके सामने प्रकट होने से मना कर दिया और उनके अनुरोध को टालते रहे वह कशी चले गए और Kedarnath के पास एक कसबे में बैल के रूप में प्रकट हुए शहर को तबसे गुप्त कशी भी कहा जाता है, फिर पांडव शिव की तलाश में गौरीकुंड पहुंचे जहाँ उन्होंने एक असामान्य बैल देखा उन्होंने उसका पीछा करना शुरू कर दिया । यह देख बैल ने अपना चेहरा पृथ्वी के नीचे छुपा लिया और भीम ने बैल के पूंछ को पकड़कर खींच लिया भीम और बैल के बीच एक रस्सा कस्सी शुरू हो गयी और अंत में बैल का चेहरा नेपाल और अन्य भाग पंच केदार इलाकों में निकला bull के hind भाग पर भगवान शिव प्रकट हुए और पांडवो को अपना दर्शन दिया और उनके पापों का भी नाश किया ।
इसके बाद भगवान शिव एक ज्योतिर्लिंग में परिवर्तित हो गए और खुद को Kedarnath में स्थापित कर दिया सभी भक्तों का दृढ विश्वास है की केदारनाथ के दर्शन से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है और तब से भगवान शिव बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं।

Kedarnath मंदिर में मुख्य भाग में मंडप और गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ है। बाहर प्रांगण में नंदी बैल वाहन के रूप में विराजमान हैं। मंदिर का निर्माण किसने कराया, इसका कोई Authentic mention नहीं मिलता है।और यह भी माना जाता है कि वर्तमान संरचना श्री आदि शंकराचार्य के द्वारा निर्मित की गयी है ।
एक अद्भुद दर्शन के बाद मौसम ख़राब होने की वजह से वापस लौटने का फैसला किया। दिन ढलने के साथ हीं line बहुत लम्बी होती जा रही थी । भगवान शिव के आशीर्वाद से हीं मैंने अपनी तीसरी धाम की यात्रा भी पूरी की आपलोगों को भी मेरा अनुभव पसंदआया होगा ।