
Delhi अपने Historical placesऔर monuments के लिए जाना जाता है। अगर आप Delhi घूमने का Plan बना रहे हैं तो India Gate और Red Fort के अलावा एक और Destination है Lotus Temple जो Delhi के प्रमुख आकर्षणों में से एक है । Lotus Temple भारत की राजधानी Delhi के kalkaji metro station के पास स्थित है। यह एक बहाई उपासना मंदिर है। यह Temple अपने आप में एक बहुत ही अद्भुत Temple है क्योंकि न तो इस मंदिर में कोई मूर्ति है और न ही इसमें किसी भी प्रकार का कोई धार्मिक कर्म-कांड होता है। लोग यहां आते हैं शांति और सुकून का अनुभव करने। कमल के समान बनी इस मंदिर की Shape के कारण इसे Lotus Temple कहा जाता है। इसे 1986 में बनाया गया था। यही वजह है कि इसे 20वीं सदी का ताजमहल भी कहा जाता है।भारतीय परंपराओं में Lotus को शांति और पवित्रता के सूचक और ईश्वर के अवतार के रूप में देखा जाता है। मंदिर का architecture Persian architect Faribarz Sahaba द्वारा तैयार किया गया था। Faribarz Sahaba ईरानी था जो कनाडा में रहता है, जिन्होंने सन 1976 में इसका Design तैयार कर निर्माण करना प्रारम्भ कर दिया था। दुनिया भर में modern architecture के नमूनों में से एक लोटस टेंपल भी है। यह मंदिर बहुत ही Popular है जिसे देखने के लिए हर रोज़ देश और विदेश से करीब 10 हजार से ज्यादा Tourist आते हैं। Lotus Temple की architecture को कई पुरस्कार के साथ 125 से भी ज्यादा अखबारों में प्रकाशन के साथ कई पत्रिकाओं में इससे सम्बन्धित लेख भी लिखे गये हैं। इसका निर्माण बहा उल्लाह ने करवाया था, जो कि बहाई धर्म के संस्थापक थे। इसलिए इस मंदिर को बहाई मंदिर भी कहा जाता है। है। बावजूद इसके यह मंदिर किसी एक धर्म के लिए केवल सिमटकर नहीं रह गया। यहां सभी Religion के लोग आते हैं और शांति और सूकून का लाभ प्राप्त करते हैं।
इसके बनने में करीब 1 करोड़ डॉलर की लागत आई थी।यह मंदिर करीब 26 एकड़ land में बना है इस इमारत में 27 खड़ी Marble की पंखुड़ियां बनी है जिसे 3 और 9 के आकार में बनाया गया है ,मतलब 3 चक्रों में व्यवस्थित हैं। मंदिर चारों ओर से 9 दरवाजों से घिरा है और बीचों बीच एक बहुत बड़ा Hall स्थित है।कमल मंदिर का Central hall 40 मीटर लम्बा है,इस Hall में करीब 2500 लोग एक साथ बैठ सकते हैं।
Lotus Temple में जाने पर पहले वहां पर प्रचारकों के द्वारा Lotus Temple के इतिहास और निर्माण पर जानकारी दिया जाता है। इसके अलावा, बहाई धर्म और उसके सिद्धांतों के बारे में भी जानकारी दिया जाता है।

History Of Lotus Temple
बहाई उपासना मन्दिर’ जो कि ‘Lotus Temple’ के नाम से जाना जाता है । बहाई धर्म के पूरी दुनिया में कुल 7 देशों में मन्दिर बनाये गये हैं जो कि Western Samoa, Sydney – Australia, Kampala – Uganda, Panama City – Panama, Frankfurt – Germany और Willamette, USA और नई दिल्ली, भारत में मौजूद हैं।
बहाई धर्म
बहाई धर्म 19वीं सदी के ईरान में सन 1844 में स्थापित एक नया धर्म था, जो एकेश्वरवाद और विश्वभर के विभिन्न धर्मों और पंथों की एकमात्र आधारशिला पर जोर देता है। इस धर्म की स्थापना बहाउल्लाह ने की थी और इसके मतों के मुताबिक दुनिया के सभी मानव धर्मों का एक ही मूल है। इसके अनुसार कई लोगों ने ईश्वर का संदेश इंसानों तक पहुंचाने के लिए नए धर्मों का प्रतिपादन किया जो उस समय और परिवेश के लिए उपयुक्त था । बहाई धर्म के अनुयायी बहाउल्लाह को पूर्व के अवतारों कृष्ण, ईसा मसीह, मुहम्मद, बुद्ध, जरथुस्त्र, मूसा आदि का पुर्नजन्म माना जाता है. इस धर्म के लोग बहाउल्लाह को कल्कि अवतार के रूप में भी मानते हैं।बहाई धर्म के संस्थापक बहाउल्लाह का जन्म आज से लगभग 200 वर्ष पूर्व तेहरान (ईरान) में हुआ था। बहाउल्लाह का शाब्दिक अर्थ है – ‘ईश्वरीय प्रकाश’ या ‘परमात्मा का प्रताप’। बहाउल्लाह को प्रभु का कार्य करने के कारण तत्कालिक शासक के आदेश से 40 वर्षों तक जेल में असहनीय कष्ट सहने पड़े. जेल में उनके गले में लोहे की मोटी जंजीर डाली गई तथा उन्हें कई तरह की कठोर यातनायें दी गई । भारत में बहाई धर्म से इसके स्थापना वर्ष 1844 से ही जुड़ा हुआ है। असल में जिन 18 पवित्र आत्माओं ने ‘महात्मा बाब’, ‘भगवान बहाउल्लाह’ के अग्रदूत को पहचाना और स्वीकार किया था, उन में से एक व्यक्ति भारत के रहने वाले थे और इस तरह से ये धर्म भारत आया।’बहाउल्लाह’ ने लोगों को यह संदेश दिया कि सम्पूर्ण मानव एक जाति है और वह समय आ गया है, जब वह एक वैश्विक समाज में बदल जाये । बहाउल्लाह द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘किताब-ए-अकदस’ में इसके सिद्धांतों का विवरण मिलता है। यह किताब 1873 के आसपास लिखी गई थी ।इस किताब को इसके फारसी नाम ‘किताब-ए-अकदस’ से अधिक जाना जाता है। बहाई धर्म के अनुयायी पूरी दुनिया के लगभग 180 देशों में समाज-नवनिर्माण के कामों में लगे हुए हैं. बहाई धर्म में धर्म गुरु, पुजारी, मौलवी या पादरी वर्ग नहीं होता है ।